भारतीय राजनीति में महिलाएं कल और आज
यूं तो हम सभी जानते हैं कि हमारे देश में महिलाओं की सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। उन्हें हमेशा से ही पुरुषों द्वारा निर्धारित एक दायरे में रहने के लिए विवश किया गया, उन्हें जो आजादी और गरिमा के साथ जिंदगी जीने का अधिकार मिलना चाहिए था वो नही मिल सका। महिलाओं को अक्सर उपहास और तिरस्कार मिला, भले ही उन्होंने देश के विकास में योगदान दिया हो, लेकिन उन पर व्यंग और कटाक्ष कुछ इस तरह से किया गया जैसे: तुम नारी हो, यही तुम्हारा दायरा है, खबरदार! अगर अपनी सीमा लांगी तो अच्छा नही होगा, तुम्हारा काम सिर्फ चौका बर्तन करना और घर की देखभाल करना है, ऐसे ही ना जाने कितने अपशब्द नारी को कहे जाते है, और शायद हमने सुना भी होगा।
क्या लगता है आपको कि क्या उन्हें ये बात चुभती नही होगी, क्या उन्हे इन शब्दों से पीड़ा नहीं होती होगी, जी हां बिलकुल होती है। लेकिन हमारे समाज का पुरुष प्रधान समाज इसे बर्दाश्त नहीं करना चाहता की कोई महिलाए उनकी बराबरी कर सके, कोई महिला उनसे आगे निकलने की कोशिश करे। हमारे देश की भारतीय राजनीति में पुरुषों की तुलना में महिलाओं ने अपनी कामयाबी का परचम लहराया है। इनकी भागीदारी से जहां एक ओर भारतीय राजनीति को एक नई गति और नया आयाम मिला, वहीं दूसरी ओर रानी लक्ष्मीबाई, मैडम बीकाजी कामा , कस्तूरबा गांधी, अरुणा आसफ अली , सरोजिनी नायडू , तथा इंदिरा गांधी जैसी कर्मठ और जुझारू महिलाओं ने हमारे देश के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया जो भुलाए नहीं भूल सकता।
इस देश की राजनीति में वर्तमान समय में गिरिजा व्यास, सुषमा स्वराज, मायावती, वसुंधरा राजे, शीला दीक्षित, ममता बनर्जी, सोनिया गांधी आदि ने अपनी सक्रियता दिखाई। इनमे से सुषमा स्वराज और शीला दिक्षित अब इस दुनिया में नही रही। हालांकि इन्होंने भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया और आने वाली पीढ़ियों के लिए भारतीय राजनीति में महिलाओं के लिए सुनहरे अवसर प्रदान किए। हालांकि आज के संदर्भ में ये इतना आसान नजर नहीं आता, क्योंकि आज भी राजनीति में भले महिलाओं को जो पद मिलता है उसका नियंत्रण आमतौर पर उनके पति या पुरुष प्रधान समाज के पास होता है। उन्हें पूरी आजादी के साथ निर्णय लेने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जाता। उन्हें आज भी सामंती सोंच के जंजीरों में जकड़ कर कैद करने की भरपूर कोशिश की जाती है। अतः आज जरूरत है तो बस इतनी कि महिलाओं को भी राजनीनिति में आने का अवसर दिया जाए और उन्हे खुद से निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र छोड़ा जाए। उनकी काबिलियत पर शक ना किया जाए और ग्रामीण क्षेत्रों के साथ साथ शहरों में भी लोकल स्तर पर चुनाव में उतरने के लिए महिलाओं की सीट और ज्यादा आरक्षित की जाए ताकि आने वाले कल की अच्छी शुरुआत कर सकें और देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे सकें। तभी हम एक बेहतर कल का निर्माण कर पाएंगे और महिलाओं के प्रति हो रहे अत्याचारों पर लगाम लगा सकते है, जिससे वो खुल कर देश की सेवाओं के लिए आगे आ सकें और फिर से देश को एक आयरन लेडी इंदिरा गांधी या फिर किरण बेदी जैसी बेटी मिल सके.!
- सुजीत अनुराग